एक टुकड़ा नींद का
उस झील के किनारे,
एक टुकड़ा नींद का,
रह गया था मेरा,
काँधे पर तुम्हारे....
मुद्दतों बाद आये थे तुम,
मेरी बाहों में,
सदियों बाद देखा था तुम्हे,
इन निगाहों ने,
दो पल भी तो तुम,
साथ ना रुके,
फिर चले गए,
सरहद के बुलाने पे.....
आज अगर तुम साथ होते,
तो छीन लेती मैं तुमसे,
वो सारे टुकड़े नींद के,
जो रह गये थे,
काँधे पर तुम्हारे,
और जोड़कर उनको,
करती नींद पूरी,
देखती वो ख्वाब,
जो रह गए अधूरे,
उस झील के किनारे.....✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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