कुछ दूर से ही सही,एक बार देख लो उस घर कि तरफ,
जो तेरे जाने के बाद, वीरान सा हो गया है,
एक झलक ही काफी है, उस शख्स के लिए तेरी,
जो तेरे जाने के बाद, गुमनाम सा हो गया है!!
क्या कभी याद नहीं आते तुम्हे वो दिन,
मेरी आगोश में गुजरे वो पलछिन,
वो दिवाली के जश्न ,वो होली के रंग,
इस घर की दीवारों पे जो बिखेरे संग संग,
वो हाथों की मेहँदी,वो सजना संवरना तेरा,
वो हाथों में हाथ लेकर,उन्हें चूमना मेरा,
कैसे भुला पाओगे मेरे स्पर्श के अहसास को,
या किसी और के स्पर्श का अहसास हो गया है,
एक झलक ही काफी उस शख्स के लिए तेरी,
जो तेरे जाने के बाद,गुमनाम सा हो गया है!!
अब तेरी यादों के सिवा कुछ याद नहीं,
मौत का भी मुझे इंतज़ार नहीं,
अकेला तन्हा भटकता हूँ,इस घर में,
अब तो दीवारें भी बात करने को तैयार नहीं,
इस उम्मीद में जी रहा हूँ कि तुम आओगे,
जब भी आओगे,दरवाज़ा खुला पाओगे..
जब भी आओगे,दरवाज़ा खुला पाओगे...
...................गौरव.......................
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