Saturday 5 January 2013

फिल्म OH MY GOD और मैं.. ?

फिल्म का नायक नास्तिक है और भगवान की मूर्तियां बेचकर परिवार का भरण पोषण करता है !
फिल्म का अधिकांश भाग श्रीभग्वदगीता से प्रेरित है अतः उसी को आधार मानकर आगे बात करते है! 

१.नायक की दुकान का तहस नहस हो जाना जिसके लिए नायक श्रीकृष्ण को दोषी ठहराकर कोर्ट केस कर देता है! 
दुकान बर्बाद क्यों हुई और क्या श्री कृष्ण ने की ?? - फिल्म की शरुआत में नायक लोभवश छ्ल कपट के द्वारा ग्राहक को ऊंचे दामो पर मूर्ति बेचते दिखाया गया है! चूँकि नायक नास्तिक है अतः उसके लिए यह व्यापार है मगर क्या नास्तिक होने पर आपको पाप कर्म करने की छूट मिल जाती है? 
और अगर कर्म किया है तो फल इसी लोक में भुगतना पड़ेगा नास्तिक या आस्तिक से होने से कर्मो के फल पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.!! तो नायक की दुकान बर्बाद होने के पीछे श्री कृष्ण कैसे हो सकते है?? ये तो नायक के कर्मो का फल है..! 

२. नायक शराब में गंगाजल मिलाकर पीता है !
कुछ समय पहले एक फिल्म आई थी अजय देवगन अभिनीत नाम था " गंगाजल" 
इस फिल्म में तेजाब को गंगाजल का नाम दिया गया था मगर फिर भी कोई विरोध नहीं किया गया बल्कि हर वर्ग ने इसे पसंद किया था क्यों ?
शायद इसलिए क्युकि वहां गंगाजल नाम रूपी तेजाब समाज की बुराई को दूर करने के लिए प्रयोग किया गया था ! 
इस फिल्म में नायक शराब में गंगाजल मिलाकर पी रहा है तो क्या शराब सामाजिक बुराई नहीं है ? या नायक सन्देश दे रहा है पानी ना मिले तो गंगाजल मिलाकर पियो मगर शराब जरुर पियो?? क्या शराबवृत्ति को बढ़ावा नहीं दिया गया ?

३. फिल्म के एक सीन में नायक अपनी पत्नी के व्रत करने पर कहता है " ये तो वही बात है मोबाइल तुम्हारा चार्ज पर लगा है और बेट्री मेरी चार्ज हो रही है " 
फिल्म के एक सीन में नायक कोर्ट में उन रसीदो को दिखाता है जो मंदिरों आदि में दान करने से सम्बंधित है! सांसारिक रूप से रसीदे नायक के नाम से है अतः मान्य है किन्तु क्या आध्यात्मिक जगत में मान्य होगी ?? दानादि कर्म श्रद्धा का विषय है और निश्चित रूप से नायक के नास्तिक होने से श्रद्धापूर्वक दान नहीं होगा ! नायक स्वयं स्वीकार करता है सभी दान उसकी पत्नी के कहने पर किये गये थे ! अतः आध्यात्मिक जगत में इस दान का श्रेय भी नायक की पत्नी को जाता है और जिस तरह सावत्री ने भी अपने पति को यमराज के बंधनों से मुक्त कर लिया था उसी तरह नायक कि पत्नी के इन शुभ कर्मो के कारण ही नायक फिल्म के अंत में १ महीने की मृत्युशैया से उठकर जीवित हो जाता है,प्रत्येक पत्नी अपने पति की दीर्घायु की ही कामना करती है और फिल्म में भी पत्नी के पुण्य कर्मो का फल उसे मिलना था !!! इश्वर इसी तरह बेट्री चार्ज करता है !!!

४.फिल्म में नायक मूर्ति पूजा का विरोध करता है! 
ये कोई नयी बात नहीं है करोड़ो लोग इस तरह के विरोध में लगे हुए है. उन सभी के सामने दो उदहारण है 
१ सूरदास जो जन्मांध थे किन्तु उन्होंने भी श्री कृष्ण को पा लिया था!! उन्होंने कभी कोई मूर्ति नहीं देखी किन्तु निराकार को साकार कर लिया था ! उनके काव्य में कृष्ण के रुपादि का वर्णन मिलता है!
२ मीराबाई जो कि दिन रात कृष्ण की मूर्ति को अपने साथ रखती थी उन्होंने भी निराकार को साकार कर लिया था ! 
मूर्ति पूजा श्रद्धा का विषय है इश्वर को पाने का एक माध्यम है,जिस तरह फिल्म में कहा गया है रास्ते अलग अलग है मंजिल एक है उसी तरह मूर्तिपूजा भी एक रास्ता है उस मंजिल को पाने का इसका विरोध क्यों ? वो सभी लोग जो मूर्तिपूजा का विरोध करते है तोड़ते है ,वे विरोध के लिए विरोध नहीं करते बल्कि मूर्तिपूजको को एक धर्म विशेष का अनुसरण करने करवाने के लिए ऐसा करते है! क्या नायक भी उनका समर्थन करता है ? 

५. फिल्म में कहा गया है धर्म मनुष्य के बनाये हुए है... में भी सहमत हूँ में सभी धर्मो को संस्थापक का नाम बता सकता हूँ मगर जब सनातन धर्म की बात आती है तो मुझे कोई नाम नहीं सूझता... जिनको पता हो वो मेरा ज्ञानवर्धन करे..!!!

६.नायक ने बालाजी आदि मंदिरों में बाल के दान करने का विरोध किया है! 
बालाजी आदि मंदिरों में बालो को विदेशी कंपनियों को बेचा जाता है, काले धन को सफ़ेद किया जाता है आदि बाते कही गयी है..!! ये एक सराहनीय प्रयास है फिल्म में भ्रष्टाचार को उजागर करने का..किन्तु यह तो राजनितिक मुद्दा है.!! विदेशी कंपनियों की जगह अगर स्वदेशी कम्पनिया इन बालों का सदुपयोग करे तो लोगो को रोजगार भी प्राप्त होगा और राष्ट्र आर्थिक रूप से शक्तिशाली भी बनेगा! काले धन की समस्या से मुक्ति मिल जायेगी ! और नायक का कथन कि दरवाजे के सामने बालो का ढेर लगा हो तो कौन खुश होगा ?? उपरोक्त कर्मो द्वारा निश्चित रूप से इश्वर बालों का ढेर देखकर खुश होगा !!!

७.नायक धर्म को बेबस और आतंकवाद इन दो रूपों में परिभाषित करता है ! 
फिल्म में जो धर्म ग्रन्थ नायक को पढते हुए दिखाया गया है उनको पढ़ने के बाद नायक स्वयं निश्चय कर सकता है बेबस कौन है और आतंकवाद किसकी देन है !!! 

८. फिल्म में मंदिरों में व्याप्त भ्रष्टाचार को दिखाया है और समाधान के रूप में मंदिर ना जाने और मंदिरों में दान ना करने की सलाह दी है! सही है पैसे आयेंगे नहीं तो भ्रष्टाचार भी नहीं होगा! पर क्या सभी मंदिर ऐसे है ?? मेरे एक मित्र ने गुप में पोस्ट किया था २ महीने तक वह बिना पैसो के मेंगलौर के मंदिर में मिलने वाले भोजन पर आश्रित रहकर जीवित रहा ! आज भी कई मंदिर है जहाँ गरीबो को जीवित रहने के लिए पर्याप्त भोजन निशुल्क मिल जाता है! गरीबो को भोजन कराने वाली मानव सेवा के लिए क्या प्रत्येक व्यक्ति अपना काम छोड़कर गरीबो को ढूँढता फिरे !! यह एक व्यवस्था है जो प्राचीन समय से चली आ रही है समर्थ लोग मंदिरों में दान करते है और जरुरतमंद लोग एक जगह मंदिर आदि में आकर लाभ प्राप्त करते है! आज इस व्यवस्था में दोष उत्पन्न हो गया है तो दोषी व्यक्तियों को हटाने के बजाय व्यवस्था को बंद करना कहाँ तक उचित है ???

९.यह फिल्म कर्म की प्रधानता को दर्शाती है और मानव सेवा को धर्म बताती है! सनातन धर्म भी इसी भावना से ओत प्रोत है अपितु सिर्फ मानव ही नहीं जीव जंतु की सेवा और रक्षा की शिक्षा भी सनातन धर्म देता है! कर्म ज्ञान का विषय है और ज्ञान शास्त्रों का अतः अधिक से अधिक शास्त्रों को पढकर अपने कर्मो का निर्धारण करे!!! ३ घण्टे की फिल्म देखकर सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्ति होना संभव नहीं है! मानव सेवा शरीर के द्वारा होती है और इश्वर निर्मित शरीर की रक्षा करने का अधिकार भी इश्वर द्वारा प्राप्त है! अपने साथ साथ अन्य मानव शरीरों की रक्षा करना भी मानव सेवा है इसलिए युद्ध से कभी पीछे ना हटे...!!!

१०.जो कुछ इस फिल्म में बताया गया है..यही सब तरीके अन्य धर्म के लोग भी हिन्दुओ को बरगलाने में करते है और उनका धर्म परिवर्तन करवाते है !!चूँकि फिल्म अन्य धर्मो के सम्बन्ध में लगभग मौन है ना तो कुरान की किसी आयत का वर्णन है ना ही बाईबिल के उपदेशो का.. इसलिए भी धर्म परिवर्तन के क्षेत्र में अन्य धर्मो को फायदा ही पहुंचायेगी,हिन्दुओ के लिए नुकसानदायक सिद्ध होगी...!!!!

भजन

आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में,
तेरी गैयाँ,तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में,
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में,
तुम ही तो द्रौपदी के,
चीरहरण से रखवाले थे,
अब तो है दुशाशन बैठा,
हर गली चौराहे में,
फिर क्यों नहीं आते कान्हा ?
क्या चीर बचा नहीं शेष में ?
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में..
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में..
तुम ही तो कहकर गये थे,
आऊंगा और आता रहूँगा,
धर्म तो अब बचा नहीं है,
पांडवो के देश में,
कौरव सारे घूम रहे है,
पांडवो के भेष में,
फिर क्यों नहीं आते कान्हा ?
या बोल गये आवेश में ?
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में,
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में..
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में.!!!! :(