Saturday 5 January 2013

भजन

आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में,
तेरी गैयाँ,तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में,
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में,
तुम ही तो द्रौपदी के,
चीरहरण से रखवाले थे,
अब तो है दुशाशन बैठा,
हर गली चौराहे में,
फिर क्यों नहीं आते कान्हा ?
क्या चीर बचा नहीं शेष में ?
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में..
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में..
तुम ही तो कहकर गये थे,
आऊंगा और आता रहूँगा,
धर्म तो अब बचा नहीं है,
पांडवो के देश में,
कौरव सारे घूम रहे है,
पांडवो के भेष में,
फिर क्यों नहीं आते कान्हा ?
या बोल गये आवेश में ?
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में,
आओ मुरारी आओ कान्हा,
उस लोक से इस लोक में..
तेरी गैयाँ तेरी गोपियाँ,
नहीं सुरक्षित देश में.!!!! :(

No comments:

Post a Comment