Wednesday, 16 July 2025

सज़ा ए इश्क़

                                   सज़ा-ए-इश्क़ 

मुजरिम हूं तेरे इश्क का, सख्ती से पेश आइए,

जमानत-ए-रिहाई सिर्फ तू हो, ऐसी सजा सुनाइए।।


उम्र कैद दीजिए या फिर सूली चढ़ाइए 

बांधने मुझे अपनी बांहों की जंजीर बनाइए।।


मेरा हाकिम तू, वकील तू, गवाह तू ही है,

अब और बहस की तकलीफ मत उठाइए।।


मेरे इश्क की तफ़्तीश में,तेरी उम्र गुजर गई,

अब तो एक फैसला मेरे हक में सुनाइए।।


मेरे इश्क के हर गुनाह में शामिल तो तू भी है,

तो फिर जो भी हो सजा मुझे, मेरा साथ निभाइए।। 

✍️गौरव

16.07.2025

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