Monday, 7 July 2025

कलम गौरव की....

कलम गौरव की...


कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,
सभी ने छोड़ दिया तुमको,
मुझे भी छोड़ दो अब तुम"

बहुत कुछ लिख लिया तुमने, 
उनकी यादों के साये में
वो अब भी लौट आयेगें,
भरम ये तोड़ दो अब तुम
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,"

लिखे जो लफ्ज़ तुमने थे 
उसी के नाम से हर रोज़,
लिखी जो नज़्म भावों से
बनी दिल पर है अब बोझ
उन्हीं नज़्मों को कर के राख
हवाओं में उड़ा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,"

ये काग़ज़ अब नहीं सहते 
तेरे ग़म की स्याही को,
दर्द में डूबे गीतों को
अश्क में भीगे शब्दों को
बनाकर नाव कागज़ की
दरिया में बहा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,

ना उम्मीद है कोई
ना शिकवा कोई बाकी है,
तुझे तन्हा ही है जीना,
ना कोई साथ बाकी है
अगर लिखना है आगे भी,
तो पिछला सब मिटा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,

नही तन्हा तुम कोई,
तुम्हारी सच्ची साथी हूँ
चले गए सब, ये सच है,
मगर तुम अब भी बाकी हो।
नई पुस्तक के पन्नो पर
बस तेरी कहानी हो।
उठा लो फिर से मुझको और,
अब खुदको ही लिखना तुम
 कलम ये कह रही मुझसे,
कि "लिखना छोड़ना मत तुम,
सभी ने छोड़ दिया तुमको,
मुझे मत छोड़ना बस तुम"
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ना मत तुम,"
✍️गौरव
08.07.2025

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