Saturday 7 January 2012

उलझन


उलझ सी गयी है जिंदगी,

कुछ अनसुलझे से रिश्तों में,

अपने जैसे परायों में,

परायों जैसे अपनों में ,


आवारा भटकता मचलता बादल,

जब सिसक सिसक कर रोता है,

तपती धरती खुश होती है,

उसके आंसू की बरसातों में,


जो कहते थे अक्सर हमको,

तुम क्या याद करोगे हमें,

वही भुलाये बैठे है,

हम खोएं उनकी यादों में,


एक लफ्ज़ बना है आयत मेरी,

हर वक्त मैं सजदा करता हूँ,

तेरा नाम हमेशा गूँजता रहता,

मेरे मन के सारे ख्यालों में,


उलझ सी गयी है जिंदगी,

कुछ अनसुलझे से रिश्तों में,

अपने जैसे परायों में,

परायों जैसे अपनों में...

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