Sunday 26 July 2020

तुम इतनी सुंदर कैसे हो

तुम इतनी सुंदर कैसे हो



घनघोर घटायें लट में बाँधे,
मृगनयन सम सुंदर आँखें,
स्वर्णिम आभा वाले तन से,
दर्पण में प्रतिबिंब भी पूछे,
तुम इतनी सुंदर कैसे हो ?
तुम इतनी सुंदर कैसे हो ?

अधरों पर जैसे मधुशाला,
मय से भरे कपोल है,
गर्दन सुराहीदार बला की,
वक्ष उन्नत और सुडौल है।

कटि कमान पर बंधी चुनरिया,
मानो प्रत्यंचा जैसे हो,
चाल तुम्हारी वेधन करते,
बाणों की वर्षा, जैसे हो
तुम इतनी सुंदर कैसे हो ?
तुम इतनी सुंदर कैसे हो ?


प्रेम तुम्हारा मेरे मन मे,
प्रज्ज्वलित होता मेरे तन में,
तुम्हारे नेत्रों के दर्पण में,
जब जब श्रृंगार मैं करती हूं,
मैं तुमको सुंदर लगती हूँ,
मैं तुमको सुंदर लगती हूँ...✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश



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