🙏🌳🌴🌲प्रकृति🌲🌴🌳🙏
प्रकृति जो माँ है अपनी,
उसने गुहार लगाई है,
मत छेड़ो मुझे मेरे बच्चों,
मैंने धरा बचाई है।
हरे भरे जो वृक्ष लगे है,
मेरे आँचल की कढ़ाई है,
काट काट के जंगल मेरे,
तुमने छाती मेरी दिखाई है,
लाज ना आती अब भी तुमको,
पर माँ तेरी शरमाई है,
मत छेड़ो मुझे मेरे बच्चों,
मैंने धरा बचाई है।
ये नदियां सागर जल के धारे,
मेरी आँखों के पानी है सारे,
प्रदूषण कर कर के तुमने,
बना दिये सब गटर और नाले,
अब कैसे प्यास बुझाओगे?
तुमने जो मेरी आँखें सुखाई है,
लाज ना आती अब भी तुमको,
पर माँ तेरी शरमाई है।
ये जो दिखते सारे पर्वत
है तेरी माता का मस्तक,
खोद खोद के तुमने खदाने,
मेरे माथे पे बल लाई है,
कैसे पालूंगी अब तुमको,
खुद मेरी जाँ पर बन आई है,
लाज ना आती अब भी तुमको,
पर माँ तेरी शरमाई है।
अब भी मौका है संभल जा,
तू घाव मेरे भर सकता है,
हरा भरा करके तू मुझको,
आगे भी जी सकता है,
मेरे जंगल मेरे पर्वत,
मेरी नदियों के धारे,
रख सहेज कर इनको ये सब,
मुझको प्राणों से प्यारे,
मैं हूँ तो, तू है मानव,
बस इतनी सी सच्चाई है
मत छेड़ो मुझे मेरे बच्चों
मैने धरा बचाई है।
🙏✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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