खिलौने जो कभी ज़िंदा थे
खिलोने वो,जो कभी थे ज़िंदा,
मिट्टी की गुड़िया, वो मिट्टी का गुड्डा,
सजाते जिन्हें थे, अपने हाथों से हम तुम,
तुम जैसी दुल्हन,मुझ जैसा दूल्हा।
हा ज़िंदा थे वो, बचपन मे अपने,
लेते थे सांसे,तुममे और मुझमें,
मिट्टी की खुशबू, से थे वो महकते,
रोते थे हम भी, जब वो थे टूटते,
वो गाड़ी का टायर और छोटी सी डंडी,
चलाते थे, फिरते हर गली पगडंडी,
खिलौना था अपना, वो हर सफर का,
ज़िंदा था जैसे, कोई हमसफ़र था।।
चपेटे वो कंचे वो इमली के बूटे,
हमेशा खुश करते, कभी नही रूठे,
देते थे साथ, जैसे कोई साथी,
हमेशा जो मेरी, जेब मे थे रहते।।
वो बैल वो हाथी वो मिट्टी के घोड़े
त्योहारों में थे जिनकी पूजा करते
हमारे घरों की जो शोभा बढ़ाते
खिलौने थे ऐसे जिनमे भगवान उतरते
आया ज़माना ये प्लास्टिक वाला,
सभी इन खिलौनों की करते है निंदा,
यादों में अब भी, है सांस लेते,
खिलौने जो कभी थे ज़िंदा।।
✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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