दर्द-ए-डॉक्टर
बहुत पढ़े होंगें आपने,
प्रेम कथाओं के वर्णन
जीवन चरित्रों के चित्रण,
विरह वेदना के मंथन
अब मेरी, व्यथा भी समझिये
कीजिये कुछ, इस पर चिंतन....
हूँ, शासकीय सेवा में
चिकित्सक धर्म निभाता हूँ,
कोरोना संदिग्धों की जाँच मै करता
घर घर दवा बंटवाता हूँ...
कितने ही दिन बीत गए,
ना देखा अपनी गुड़िया को,
मेरा नन्हा मुन्ना राजा
है दस माह का होने को...
गोद में छोड़ के आया जिसको
वो अब चलना सीख गया,
आ बा डा बा करने वाला
पापा पापा सीख गया...
घर से मेरी बूढ़ी अम्मा
करके फोन बुलाती है,
विरह वेदना से पीड़ित
मेरी पत्नी मुझे रुलाती है...
पापा तुम कब आओगे
बिटिया, पूछती बातों बातों में
कैसे बता दूँ तुमको बेटा
ये नही है मेरे हाथों मे,
बिस्किट, चॉकलेट ,आइसक्रीम सब
लेकर इक दिन आता हूँ
झूठी मूठी बातों से,
उसको विश्वास दिलाता हूँ...
पर अब मै, ये जान गया
सरकारो ने भी माना है
खत्म ना होगा कोरोना ये
इसके साथ ही जीते जाना है...
तो खत्म करो, ये तालाबंदी
उठाओ, हम पर से पाबंदी
अवकाशों की स्वीकृति देकर
घर जाने की दो रज़ामंदी...
तन मन से हूँ थका हुआ
अब नही बची, सहने की शक्ति
अब नही बची, सहने की शक्ति..🙏🙏🙏✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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