Sunday 26 July 2020

ग़ज़ल- मयकदा

मयकदा


पैमाना हाथ मे लिए मयकदे में बैठा हूँ
पीने के लिए आया था मगर बिना पिये बैठा हूँ।

उठाया था जाम लगाने को होंठो से फिर
याद आया "ना पीने की तेरी" कसम लिए बैठा हूँ।

आता हूँ इसलिए कही मयकदा भूल न जाये मुझे
मैं पीना ना भूल जाऊं, तो माहौल बनाये बैठा हूँ।

मयकदे की दुनिया मे नही अंजान कोई शक्स
सब नशे में है,मैं सबसे पहचान किये बैठा हूँ।

तेरी दुनिया मे शराबी कहते है मुझे
"मैं शराबी हूँ" यही गुमान किये बैठा हूँ।

अब हो गया नशा के बहुत सोच लिया तुझे
मैं आँखों मे तेरे नाम के जाम लिए बैठा हूँ।...✍️गौरव



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