Sunday 26 July 2020

आग के देवी देवता😜

आग के देवी देवता😜


आयुर्वेद की दृष्टि से तो हम सभी हर जीव आग का देवी देवता है।आयुर्वेद में 13 तरह की अग्नियां बताई है,जिनमे जठराग्नि प्रमुख है, हां वही पेट की आग...जिसके लिए ये दुनिया जगत का सारा प्रपंच है।
इसके अलावा 7 धात्वग्नि,और 5 भूताग्नि...भूताग्नि यानी पंच महाभूत आकाश,वायु,अग्नि,जल,पृथ्वी... इन्ही से हमारा शरीर बना है। ऐसे ही रस, रक्त, मांस,मेद, अस्थि,मज्जा,शुक्र, ये 7 धात्वग्नि है।
जठराग्नि आहार का पाक करके आहार रस बनाती है,उसके बाद धात्वग्नियाँ उस रस का पाक कर अपना अपना वर्धन करती है।इसी तरह भूताग्नि भी कार्य करती है,विषय बहुत विस्तृत है,इसे यही सीमित करते है,कहने का तातपर्य ये है कि हम सभी मे ये अग्नियां समुचित कार्य करें,तो हम निरोगी अन्यथा,इनकी विकृति से रोगी बन जाते है। जैसे आग पर पानी डालने से धुआं उठता है,वैसे ही जठराग्नि के मंद होने पर गैस की शिकायत होने लगती है।

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यहां तो बहुत से आग के देवता है,देवता क्या देवियां भी बहुत मिल जाती है। कही भी सार्वजनिक स्थानों पर आग से सुलगती धूम्रकंडिका कभी होंठों से चिपकाकर,तो कभी उंगलियों में फंसाकर दम खींचते है,और फिर जब धुँआ छोड़ते है तो,देखते ही बनते है। मुझे देवियों को देखने मे आनंद मिलता है,उनका style अलग लगता है,या फिर मुझे कभी कभी ही वो धूम्रपान करती दिखती है इसलिए भी आकर्षक लगती है। पुरुष प्रधान समाज मे पुरुषो को हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर चलती स्त्रियां, इस क्षेत्र में भी परुषों को टक्कर दे रही है, ये सोचकर अच्छा भी लगता है 😜। अमीर, मध्यमवर्ग सिगरेट सुलगाकर और गरीब बीड़ी जलाकर आग का देवता बना मिल जाता है। मुझे बुरा  तब लगता है जब चिलम फूंकने वाले इसे महादेव से जोड़कर अपने आप को भक्त बताते है। खैर सबकी अपनी अपनी मान्यताएं है,क्या करें, इसलिए किसी को सुधारने की हमारी कोई मंशा नही है,वैसे भी अगर ये सुधर गए तो हमारी रोज़ी रोटी कैसे चलेगी😜।

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पुराने समय मे सर्कस में भी आग का देवता हुआ करता है,जो पूरे शरीर पर फायर प्रूफ सूट पहनकर, आग लगाकर,ऊंचाई से नीचे जलकुंड में कूद जाता था। उसकी आजीविका का साधन यही था,इसलिए रोज़ जलता बुझता रहता था। उनमे ही वो भी रहते थे जो मुंह मे पेट्रोल भरकर मशाल की आग भड़काते थे। मुझे वो पसंद थे।😀
वैसे पहले वाले आग के देवता सड़को पर किसी मंत्री या मुख्यालय के सामने बिना fire proof suit पहने प्रदर्शन करते हुए दिख जाते है।राजनीतिक प्रदर्शन के अलावा भी लोग इतने मजबूर हो जाते है कि उन्हें मौत का भय भी नही रहता और इसके अलावा कोई रास्ता नही दिखता। जैसे अभी हाल ही में गुना कांड में हुआ

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आग का देवता बनाने में बॉलीवुड फिल्मों ने भी कोई कसर नही छोड़ी। आपको भी याद होगा आमिर खान की फ़िल्म गुलाम का गाना "आती क्या खंडाला" में कैसे आमिर खान ने जलती तीली अपनी जबान पर बुझाई थी। जबान तो वैसे भी अपने शब्दो से आग लगा देती है,फिर उनको तीली दिखाने से क्या फायदा। मगर ये स्टाइल खूब चला,बड़े क्या बच्चे क्या सब अपनी जबान जलाने लग गए थे, मैं भी खुद को आमिर समझने लगा था😜।
आजकल तीली वाला जमाना तो रहा नही अब तो आग वाला पान आ गया है ना,सैक्रीन लपेट के पान में आग लगा देते है,और मुंह मे भर देते है,फिर उसका धुँआ मुंह ,नाक, कान,या.... जहां से भी निकले किसी को क्या फर्क पड़ता है,बात तो आग का देवी देवता बनने से है बस

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और अब आते है असली आग के देवता...हमारे fire fighters...
देवता वही जो दूसरों के लिए कुछ करे,उनके दुख दूर करे, उनकी जान बचाये,और यही काम करते है हमारे अग्निशामक विभाग के मैदानी कर्मचारी, जो अपनी जान दांव पर लगा के भी दूसरों को आग से बचाते है। यही है असली आग के देवता, नमन है इनको🙏🙏

अब बोर हो गया हूँ लिखते लिखते, तो इस विषय को यही समाप्त करता हूँ,और जाकर आग का देवता बनता हूँ, मतलब चाय पीता हूँ, चाय भी आग लगा देती है तनमन में😜

अंत मे यही कहूंगा...धूम्रपान करना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
क्या है ना संदेश भी दे देना चाहिए, लेखन की value बढ़ जाती हैं।😜😜

🙏🙏🙏 गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश



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