मेरे अश्क़ों से मिलकर,चले जाया करो
कभी बनके हवा,सर्द से मौसम की
छूकर मुझे,मुझको कंपकपाया करो
गर्मी के मौसम की लपटों में, छुपकर
पसीने से तर बदन को,सहलाया करो
कभी बनके वो ख्वाब,जो डराए मुझे
तुम आओ मुझे नींद से, जगाया करो
करें कब तक तुम्हारा इंतज़ार "गौरव"
कभी बनके कफ़न हमसे,लिपट जाया करो।।
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