Sunday 26 July 2020

ग़ज़ल- दुनिया की आखिरी शाम

ग़ज़ल- दुनिया की आखिरी शाम

कभी बारिश बनकर, चले आया करो
मेरे अश्क़ों से मिलकर,चले जाया करो

कभी बनके हवा,सर्द से मौसम की
छूकर मुझे,मुझको कंपकपाया करो

गर्मी के मौसम की लपटों में, छुपकर
पसीने से तर बदन को,सहलाया करो

कभी बनके वो ख्वाब,जो डराए मुझे
तुम आओ मुझे नींद से, जगाया करो

करे कब तक तुम्हारा इंतज़ार "गौरव"
कभी बनके कफ़न हमसे,लिपट जाया करो।।

मेरी दुनिया की आखिरी शाम समझ लेना उसे
जब किसी को फ़लक से टूटता तारा दिखाया करो।।

✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश

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