ग़ज़ल- ज़िन्दगी
आज के रंगों से चित्र, कल का बनाता चला गया,
कल की हर फिक्र को धुँए में उड़ाता चला गया।।
राहें मुश्किल रही ज़िंदगी के सफर की,
मैं हौसले से पांव, ज़मीं पे टिकाता चला गया।।
हालात बद से बदतर होते चले गए,
मैं सब्र से बुरे वक्त को, काटता चला गया।।
नसीब के इंतज़ार में बैठा ना रहा कभी,
मेहनत के पांव से, पत्थरों को हटाता चला गया।।
धोखे के खंजरों से लगे जख़्म जेहन में
हर ज़ख़्म मुझे, कुछ ना कुछ सिखाता चला गया।
टूटे हुए दिल से भी, लोगो के लबों को,
ग़म अपने छुपाके, हंसाता चला गया।।
कुछ छोड़ के गए,कुछ अब भी साथ है,
जैसे भी बना,मैं सबके साथ निभाता चला गया।।
✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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