Sunday 31 May 2020

आफ़ताब

एक दिन ढल जाएगा,चेहरे का आफ़ताब,
रह जायेगी थकान,जिंदगी की बेहिसाब,
ना रहेगी चुस्ती फुर्ती, तंदरूस्ती बदन की,
रह जायेगी सिलवटे, बीती ज़िन्दगी की...

आएंगी याद सारी बातें,
गुजरते लम्हों में,सुनहरे लम्हो की
हंसाती, रुलाती,कहकहे लगातीं,
अपने परायों के किस्से सुनातीं...

वक़्त से भला कौन जीत पाया है,
उम्र का ये दौर सबके हिस्से में आया है,
काश ये दौलत शोहरत बुढ़ापे को मार पाती
गर नही ऐसा तो फिर क्यों ये सब कमाया है...

तो आ, फिर उस दौर को जगमगाते है,
हर पल जीते है, हर लम्हा मुस्कुराते है,
मिलकर अनजान लोगों से, दिल से दिल मिलाते है,
मौत तक जो खत्म ना हों, इतनी यादें बनाते है...

दिलकश बातें,हसीन यादें,पूरे हुए ख्वाब,
इन्ही से चमकेगा,अपने नाम का आफ़ताब...✍️गौरव

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