Thursday 14 May 2020

मज़दूर

ना होता मैं जो, शहरों में
कैसे, पहचान बनाते तुम ?
कैसे, कारोबार तुम करते ?
कैसे घर मकान बनाते तुम ?
ना होता जो मैं, खेतो में
कैसे, धान लगाते तुम ?
ना होता जो मैं,बागों में
फल फूल कहाँ से लाते तुम ?
अब मैं हूँ, उन सड़को पे
मैंने ही बनाया, है जिनको
नाप नाप के बनी थी जो
मैं, पैदल नाप रहा उनको
नही सहारा मिला मुझें
उन सारे ठेकेदारों से
ना कर दी व्यवस्था मेरे लिए
मेरी ही सरकारो ने
विकास धरा का, करने वाला
विकास धारा से, दूर हूँ मैं
अपने पांव में छाले लिए
पैदल चलता, मज़दूर हूँ मैं
अपने पांव में छाले लिए
पैदल चलता, मज़दूर हूँ मैं...✍️©️गौरव

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