सोचता हूँ बैठ अकेले
तेरे संग जो सुख दुख झेले
तेरे साथ है प्यार के मेले
मैं उन मेलों में
अक्सर गुम हो जाता हूँ
ऐसे मन बहलाता हुँ
मैं ऐसे मन बहलाता हुँ।
प्रतीक्षा की घडियों में
कल्पना की कड़ियों में
तेरे बालों की लड़ियों में
शब्दो के मोती पिरोकर
मैं गीत नया बन जाता हूँ
ऐसे मन बहलाता हुँ
मैं ऐसे मन बहलाता हुँ।
सिलसिला मुलाकातों का
हर समय तेरी बातों का
समंदर है तेरी यादों का
में डूबकर इसमे
फिर ना उतराता हुँ
ऐसे मन बहलाता हुँ।
मैं ऐसे मन बहलाता हुँ...✍️©️गौरव
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