Friday 12 June 2020

अपराधी

उसका अपराधी

खेल खेला प्रकृति से, और लाचार बन गया,
बन उसका अपराधी, गुनाहगार बन गया,

तरक्की की चाह में,उखड़ता रहा जड़ो से,
मनुष्य अपने रचे व्यूह का, शिकार बन गया।

जिसके हाथों में बंधी रस्सियों पे नाचता रहा,
उससे ख़िलाफ़त में भी तू उसका ही हथियार बन गया,

चला जो दांव कुदरत ने, अहम के खेल में,
मिट्टी के खिलौनों सा, बेकार बन गया। ✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश

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