Friday, 26 June 2020

ग़ज़ल- इश्क़

कभी आओ मेरे ख्वाब में, तो थोड़ी गुफ्तगूं हो,
यूँ सरेआम राह में तो नज़र भी नही मिलती....

कभी कूचे पे खड़ा रहता हूँ, कभी छज्जे पे,
तुझे देखने की हसरत से फुरसत नही मिलती.....

वो जो कहते है, इश्क़ बर्बाद करता है,
मेरा मशवरा है,बिना इश्क़ के तरक्की नही मिलती....

हूँ काफ़िर नज़र में तुम्हारी, तो उम्दा है,
वतन के आगे मुझे इबादत कोई, बड़ी नही मिलती....

कतरा-ए-इश्क़ रख दिल में, बचा के "गौरव",
बिना माँ बाप की दुआओं के,जन्नत नही मिलती....🙏🙏✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश

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