Monday 22 June 2020

बचपन सुहाना


रद्दी से कागज का, प्लेन बनाना,
मेरी जेब का था, सुनहरा खज़ाना,
वो टूटी फूटी सी चीज़े जुटाना,
फिर उनसे नया एक खिलौना बनाना।।
वो रेत के टीलों पे घर का बनाना,
यारों के संग यूँही दौड़ लगाना,
वो खो-खो,कबड्डी,वो डंडा वो गिल्ली,
बड़ा याद आता है, बचपन सुहाना।।

वो बल्ला उठाके गली में निकलना,
और मेरे दोस्तो का बॉल ले आना,
होता था क्रिकेट का शोर शराबा,
किसी न किसी से लड़ के घर आना।।
ना समय की थी बंदिश, ना पढ़ने की चिंता,
दिन भर खेलना,फिर थक के सो जाना,
ना घर पे था  tv ना फोन का ज़माना,
यारो संग मस्ती में समय बिताना।।

गर्मी की रातों में बिजली का जाना,
बिस्तर उठाके फिर छत पे लगाना,
हो पानी की किल्लत तो ठेला उठाना,
दूर कही से drum भर भरके लाना।।
होता group में था पढ़ना पढ़ाना
परीक्षा में बस पास हो जाना,
संघर्ष का हँसता चेहरा नूराना
बड़ा याद आता है,बचपन सुहाना।।


हो बारिश का मौसम और दिन हो सुहाना,
तो साइकिल उठाके दूर घूम के आना,
सड़कों के गड्डों से पानी उड़ाना,
मम्मी के हाथों का काम बढ़ाना।।

सर्दी की रातों में अलाव जलाना,
यारों संग बैठके गप्पे लड़ाना,
देर से उठना और डांट खाके,
फटाफट फुर्ती से स्कूल जाना।।

नयी नयी चीज़ों पे जी ललचाना,
पापा की मार से ठीक हो जाना,
मम्मी   सिखाती   रही   हमेशा,
मेहनत करो कुछ बनके दिखाना।।

बचपन के खेलों ने था सिखाया,
जो हारो, तो कोशिश फिर करते जाना,
ना डरना कभी, ना हार मानना,
लड़ लड़ के अंत, मे है जीत जाना।।

अब ना दिखेगा वो बचपन सुहाना,
नए नए गेजेट्स का आया ज़माना,
बचपन है उलझा tv, मोबाइल में,
पढ़ाई के प्रेसर में खोता सयाना।।

आंखों के तारों, को है सिखाना,
बनके सितारा, ना टूट जाना,
ज़िन्दगी में हारो, तो ना घबड़ाना,
कोशिश करो और करते जाना।।
लड़ लड़ के अंत मे,है जीत जाना,
मन से है उनको, मज़बूत बनाना,
हमें अपने बच्चों को, यही है सिखाना,
हमें अपने बच्चों को, यही है सिखाना।।..✍️गौरव 

भोपाल मध्यप्रदेश
9424557556

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