मेंहदी
नाकाम मोहब्बत के आँसू लिए,वो दुल्हन की तरह सजती होगी।
उन मेंहदी वाले हाथों से, मेरे नाम की खुशबू आती होगी।।
जब छूती होगी दर्पण को,मेरा अक्स उभर आता होगा।
जब चलती होगी,गश खाके,मेरी याद में गिर जाती होगी।।
तबियत अपनी छुपाने को,सखियों संग मुस्काती होगी।
फिर मौका पाकर तन्हाई में,आंसू ढेर बहाती होगी।।
शहनाई की धुन में भी, संगीत विरह सुनती होगी।
मुझको भुलाने की पल पल, नाकाम सी कोशिश करती होगी।।
देखी होगी दूल्हे को, मुझ जैसा ना पाती होगी।
देख के बाबा की सूरत, चुप करके रह जाती होगी।।
वरमाला के फूलों से,कांटो सी छिल जाती होगी।
पर अंतर्मन के घावों को, चेहरे पर ना लाती होगी।।
सोचती होगी फेरों पर, किस्मत को दोष लगाती होगी।
मन का फेरा राधा-कृष्ण सा, सोच कहाँ पाती होगी।।
विदा हुई तो एक नज़र, इस घर पर भी डाली होगी।
रखना ध्यान उस पगले का, सखियों को समझाती होगी।।
हाथों की मेहंदी का रंग, इक दिन तो फीका होगा।
मेरे लिए नही अब तुमको,परिवार के लिए जीना होगा।।
🙏🙏🙏
✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश
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