Monday, 29 June 2020

गाना बना दूँ।

तेरे हाथों की उंगली को कलम बना दूँ
तेरे होंठो की लाली को स्याही बना दूँ
मेरे दिल को मैं कागज बनाकर सनम
तेरी मस्त जवानी पे गाना बना दूँ
तेरी जुल्फों की काली घनेरी घटायें
तेरी आँखों की ये मदमस्त अदाएं
चंदन से निखरा हुआ तेरा यौवन
मुझे इश्क़ करने से रोक ना पाए
तेरी तिरछी त्योरी को कलम बना दूँ
तेरे गालों की लाली को स्याही बना दूँ
मेरे दिल को मै कागज बनाकर सनम
तेरी मस्त जवानी पे गाना बना दूँ
तारीफ-ए-बदन में क्या क्या लिखूँ
सुन्दर सुनहरा माहताब लिख दूँ
चांदनी से नहाया तेरा हर एक अंग
हर अंग को तराशा जवाहरात लिख दूँ
तेरी पतली कमर को कलम बना दूँ
तेरे गुलाबी बदन को स्याही बना दूँ
मेरे दिल को मैं कागज बनाकर सनम
तेरी मस्त जवानी पे गाना बना दूँ।





Friday, 26 June 2020

ग़ज़ल- इश्क़

कभी आओ मेरे ख्वाब में, तो थोड़ी गुफ्तगूं हो,
यूँ सरेआम राह में तो नज़र भी नही मिलती....

कभी कूचे पे खड़ा रहता हूँ, कभी छज्जे पे,
तुझे देखने की हसरत से फुरसत नही मिलती.....

वो जो कहते है, इश्क़ बर्बाद करता है,
मेरा मशवरा है,बिना इश्क़ के तरक्की नही मिलती....

हूँ काफ़िर नज़र में तुम्हारी, तो उम्दा है,
वतन के आगे मुझे इबादत कोई, बड़ी नही मिलती....

कतरा-ए-इश्क़ रख दिल में, बचा के "गौरव",
बिना माँ बाप की दुआओं के,जन्नत नही मिलती....🙏🙏✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश

Monday, 22 June 2020

बचपन सुहाना


रद्दी से कागज का, प्लेन बनाना,
मेरी जेब का था, सुनहरा खज़ाना,
वो टूटी फूटी सी चीज़े जुटाना,
फिर उनसे नया एक खिलौना बनाना।।
वो रेत के टीलों पे घर का बनाना,
यारों के संग यूँही दौड़ लगाना,
वो खो-खो,कबड्डी,वो डंडा वो गिल्ली,
बड़ा याद आता है, बचपन सुहाना।।

वो बल्ला उठाके गली में निकलना,
और मेरे दोस्तो का बॉल ले आना,
होता था क्रिकेट का शोर शराबा,
किसी न किसी से लड़ के घर आना।।
ना समय की थी बंदिश, ना पढ़ने की चिंता,
दिन भर खेलना,फिर थक के सो जाना,
ना घर पे था  tv ना फोन का ज़माना,
यारो संग मस्ती में समय बिताना।।

गर्मी की रातों में बिजली का जाना,
बिस्तर उठाके फिर छत पे लगाना,
हो पानी की किल्लत तो ठेला उठाना,
दूर कही से drum भर भरके लाना।।
होता group में था पढ़ना पढ़ाना
परीक्षा में बस पास हो जाना,
संघर्ष का हँसता चेहरा नूराना
बड़ा याद आता है,बचपन सुहाना।।


हो बारिश का मौसम और दिन हो सुहाना,
तो साइकिल उठाके दूर घूम के आना,
सड़कों के गड्डों से पानी उड़ाना,
मम्मी के हाथों का काम बढ़ाना।।

सर्दी की रातों में अलाव जलाना,
यारों संग बैठके गप्पे लड़ाना,
देर से उठना और डांट खाके,
फटाफट फुर्ती से स्कूल जाना।।

नयी नयी चीज़ों पे जी ललचाना,
पापा की मार से ठीक हो जाना,
मम्मी   सिखाती   रही   हमेशा,
मेहनत करो कुछ बनके दिखाना।।

बचपन के खेलों ने था सिखाया,
जो हारो, तो कोशिश फिर करते जाना,
ना डरना कभी, ना हार मानना,
लड़ लड़ के अंत, मे है जीत जाना।।

अब ना दिखेगा वो बचपन सुहाना,
नए नए गेजेट्स का आया ज़माना,
बचपन है उलझा tv, मोबाइल में,
पढ़ाई के प्रेसर में खोता सयाना।।

आंखों के तारों, को है सिखाना,
बनके सितारा, ना टूट जाना,
ज़िन्दगी में हारो, तो ना घबड़ाना,
कोशिश करो और करते जाना।।
लड़ लड़ के अंत मे,है जीत जाना,
मन से है उनको, मज़बूत बनाना,
हमें अपने बच्चों को, यही है सिखाना,
हमें अपने बच्चों को, यही है सिखाना।।..✍️गौरव 

भोपाल मध्यप्रदेश
9424557556

Wednesday, 17 June 2020

मेंहदी

मेंहदी


नाकाम मोहब्बत के आँसू लिए,वो दुल्हन की तरह सजती होगी।
उन मेंहदी वाले हाथों से,  मेरे नाम की खुशबू आती होगी।।

जब छूती होगी दर्पण को,मेरा अक्स उभर आता होगा।
जब चलती होगी,गश खाके,मेरी याद में गिर जाती होगी।।

तबियत अपनी छुपाने को,सखियों संग मुस्काती होगी।
फिर मौका पाकर तन्हाई में,आंसू ढेर बहाती होगी।।

शहनाई की धुन में भी, संगीत विरह सुनती होगी।
मुझको भुलाने की पल पल, नाकाम सी कोशिश करती होगी।।

देखी होगी दूल्हे को, मुझ जैसा ना पाती होगी।
देख के बाबा की सूरत, चुप करके रह जाती होगी।।

वरमाला के फूलों से,कांटो सी छिल जाती होगी।
पर अंतर्मन के घावों को, चेहरे पर ना लाती होगी।।

सोचती होगी फेरों पर, किस्मत को दोष लगाती होगी।
मन का फेरा राधा-कृष्ण सा, सोच कहाँ पाती होगी।।

विदा हुई तो एक नज़र, इस घर पर भी डाली होगी।
रखना ध्यान उस पगले का, सखियों को समझाती होगी।।

हाथों की मेहंदी का रंग, इक दिन तो फीका होगा।
मेरे लिए नही अब तुमको,परिवार के लिए जीना होगा।।

🙏🙏🙏
✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश

ग़ज़ल- शहर

मैं तेरे शहर से होकर, जब गुजरता हूँ,
तेरी खुशबू से मेरी, सांस महक जाती है।
मैं तेरे शहर से होकर, जब गुजरता हूँ.....

दूर से आया हूँ मैं, दूर तलक जाऊँगा,
बीच मे तेरा शहर, बस यही रुक जाती है।
मैं तेरे शहर से होकर, जब गुजरता हूँ....

देखता हूँ झरोखों से, शहर का मंजर,
तेरी यादें बेहिसाब, चली आती है।
मैं तेरे शहर से होकर जब गुजरता हूँ....

तुम नही थे तो मैं, शान से गुज़रता था
अब जो तुम हो तो क्यूँ,आंख ये भर आती है।
मैं तेरे शहर से होकर, जब गुजरता हूँ....

जानते हो,किसी को,शहर में "गौरव"
जिक्र से तेरे,  लबों पर खुशी आती है।
मैं तुझे खुदमें रखूं ज़िंदा,बस इसी खातिर,
मैं तेरे शहर से बार - बार गुजरता हूँ....
मैं तेरे शहर से बार - बार गुजरता हूँ....✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश

Saturday, 13 June 2020

तिश्नगी ग़ज़ल

तुमको पाकर भी यूँ लगा मुझको
ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है
बहते आँसू ना दिखे मुझको
फिर भी आंखों में कुछ नमी सी है।

मेरी आगोश में तो शाम से है
रात फिर भी मुझे जगी सी लगी
कह दो ना इश्क़ नही रहा मुझसे
क्यूँ ये बेतकल्लुफ़ी सी है।

क्या गिला शिक़वा अब करूँ तुझसे
दिल की बाते दिमाग़ी सी लगी
तुम चले जाओ मेरे पहलू से
मेरी सांसो की भी रुख़्सती सी है।

लोग कहते है मोहब्बत जिसको
वो तुम्हारे लिए तिश्नगी सी है
तुमको पाकर भी यूँ लगा मुझको
ज़िन्दगी में कुछ कमी सी है....✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश
9424557556

Friday, 12 June 2020

मैं कौन हूँ?

"मैं कौन हूँ "? मैं क्यूँ बताऊँ ?
ये काम तो आपका है,
इसमें क्यूँ मैं टांग अड़ाऊँ ?
मैं कौन हूँ, मैं क्यूँ बताऊँ ?
हम भारतवासी है,
हमको जन्मजात अधिकार मिला है,
सबको जज करने का,
बड़े आराम का ये काम मिला है,
मैं भी ये करता हूँ,
पर अपने बारे में, मैं मौन हूँ,
ये काम तो आपका है,
आप बताएं, "मैं कौन हूँ" ?

युवा देश का

He loves me, he loves me not
She loves me, she loves me not
उलझा इसी  झमेले में देश का युवा,
होड़ में लगा, दिखना चाहता है सबसे hot,

पढ़ी किताबे चार, विदेश जाने को बेक़रार।
देश के भविष्य की, देश जोह रहा बाट।।

पैदल ना चलना चाहे, चाहे पूरे ठाट-बाट।
माँ बाप के खून पसीने की, खड़ी कर रहा खाट।।

Pizza burger noodles को माने ये पकवान।
भूल गया घर मे बने, माँ के खाने का स्वाद।।

अक यू बक यू अंड शंड बकता अंग्रेज की औलाद।
मातृभाषा ना सीखी ना सीखा नैतिकता का पाठ।।

उसके इस बर्ताव का, अपराधी है कौन?
कौन कर रहा है, समाज को बर्बाद।। 

कुछ पथभ्रष्ट के लिए,अन्यथा ना लें धन्यवाद।

✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश

Tuesday, 9 June 2020

ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा

[Intro] [Humming]
[Verse 1]
[Male Vocal]
ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
लब सिले सिले रहे जुबां भी जैसे जम गई,
नज़र मिली नज़र से और, दिल हमारा खो गया।

[Female Vocal]
ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
लब सिले सिले रहे जुबां भी जैसे जम गई,
नज़र मिली नज़र से और, दिल हमारा खो गया।

[Duet]
ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
[Instrumental break]
[Verse 2]

[Female] प्रेम की लहर पे, दो कश्तियाँ उतर गई,
[Male] ख़्वाब के हिलोरों पे, दिल मचल मचल गया।
[Female] उनकी एक नज़र में ही, अहसास मुझको हो गया
[Male] चेहरों की भीड़ में,  मैं खास जैसे हो गया।

[Female] ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
[Male] लब सिले सिले रहे जुबां भी जैसे जम गई,
नज़र मिली नज़र से और, दिल हमारा खो गया।

[Duet] ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
[Instrumental break]
[Verse 3]

[Female] प्यार की कहानियां, पढ़ी बहुत किताब में,
तुमको देखकर लगा कि, मुझको प्यार मिल गया।

[Male] खुशबुएँ गुलाब की, बिखेरती निकल गईं,
तुम गयीं या कारवां, बहारों का गुजर गया।

[Duet] ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।

[Outro]
[Duet] ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
लब सिले सिले रहे जुबां भी जैसे जम गई,
नज़र मिली नज़र से और, दिल हमारा खो गया।

ना बोले तुम, ना मैंने कुछ कहा,
एक अनजाना, सा रिश्ता जुड़ गया।
[Music Fade Out]


✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश





कान्हा जी



💕कान्हा जी💕

कर्मों की कश्ती पर बैठा,
"श्री गीता" की पतवार लगा दो,
भव सागर के बीच फंसा हूँ,
कान्हाजी मुझे पार लगा दो...

दुखहर्ता सुखकर्ता तुम ही,
कर्मों का निर्धारण करते हो,
पापी है जो जन्म जन्म के,
तुम सबका तारण करते हो,
मायाजाल के बीच फंसा हूँ,
बुद्धि मेरी सतकार्य लगा दो,
भव सागर के बीच फंसा हूँ,
कान्हाजी मुझे पार लगा दो,

अधर्म से मुक्त कराने का,
पाप धरा से मिटाने का,
वचन दिया था आने का,
संसार को बचाने का,
समय हो गया है, अब प्रभु,
अपना इक अवतार दिखा दो,
भव सागर के बीच फंसा हूँ,
कान्हाजी मुझे पार लगा दो,
कान्हाजी मुझे पार लगा दो....🙏✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश




ग़ज़ल -एक प्यार का नग़मा है




सांसो की साज़ पे चलता,धड़कन से गुजरता है
मेरी यादों में जख्म सा एक प्यार का नग़मा है।

तन्हाई के आलम में मेरी आँखों से बरसता है,
गिर्दाब-ए-दर्द सा एक प्यार का नग़मा है।  गिर्दाब - बबंडर

मुद्दतों से मेरे जेहन को इज़्तिराब अता करता है
बेख़ता इश्क़-ए-इब्तिला सा एक प्यार का नग़मा है।

इज्तिराब - बैचेनी,घबराहट,चिंता, बेख़ता -निर्दोष, इब्तिला- दुर्भाग्य , पीड़ा

तमाम उम्र की उकूबत है तो नदीम बनके रहता है,
मेरे दर्द की दवा सा एक प्यार का नग़मा है।

उकूबत - सज़ा, नदीम- घनिष्ट मित्र
 ✍️गौरव
भोपाल मध्यप्रदेश

Sunday, 7 June 2020

उम्मीद

आज फिर तुमसे मिला,आज फिर उम्मीद जगी है,
तेरे दिल को भी, मोहब्बत की तलब, अब भी लगी है।


कैसे कह दूं, कि मैं, तन्हा हूँ, भरी दुनिया मे,
जो मिला मुझको,मुझे, तेरी झलक, उसमे मिली है।


बन के ख़ुशबू, कभी बिखरे थे, मेरी, सांसो में,
मेरे जेहन में, वो, सौंधी सी महक, अब भी बची है।


और क्या बाक़ी है, दस्तूर-ए-इश्क़ निभाने को,
मेरी हर सांस तेरी सांस से अब भी जुड़ी हैं। ✍️गौरव
 
भोपाल मध्यप्रदेश