जैसे भी हो, जी रहे है,
पहले गरीबी से, अब
महामारी से लड़ रहे है,
गरीब आदमी है,
अस्पताल के खर्चों से भयाक्रान्त
घर मे ही देसी काढ़े पी रहे है,
जैसे भी हो, जी रहे है।
जंगल काटे ज़मीन बनाई
फिर ज़मीन की मारामारी हुई,
जल इतना बहाया की,
खरीद खरीद के प्यास बुझाई
जल जंगल ज़मीन मिटे तो,
हवा खरीदने की नौबत आई,
अपने लिए हवा मिले ना मिले,
बच्चों के लिए पेड़ पौधे लगा रहे है,
Mask, Senetizer के खर्चे में
दो वक़्त का खाना जुटा रहे है
पुराने गमझे से काम चला रहे है
जैसे भी हो जी रहे है।
किसे भला कहे, किसे बुरा,
सभी तो ईमानदार है यहां
क्या आम क्या खास
"आपदा में अवसर" के
सरकारी फ़रमान का लाभ
सभी उठा रहे है,
जैसे भी हो जी रहे है।
शमशान आबाद है,
घर बर्बाद है,
मौत मनाती है,जश्न
ज़िन्दगी उदास है,
किसके लिए रोएं या,
किस किस के लिए रोएं,
अपनों की चिंताओं को,
दाग ना पाना,
यही मौत का नंगा नाच है,
चिताओं की आंच से,
आंसू कबके सूख गए,
संवेदना रहित जिस्म,
बस ज़िंदा लाश है।
सुखद भविष्य की आस में,
वर्तमान के कड़वे घूँट पी रहे है,
जैसे भी हो, जी रहे है,
जैसे भी हो, बस जी रहे है।।।
✍️गौरव
03.05.2021
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