Friday, 1 August 2025

असीर (ग़ज़ल)

 ग़ज़ल


अदीब बनके निकले थे तेरे आशियाने को

हक़ीक़त ये थी कि मैं इश्क़ में फ़ाज़िल नही था।


इक्तिज़ा थी मेरी कि तू भी इक़रार करे

मगर इज़हार-ए-इश्क़ मेरा,  तेरे मुताबिक़ नही था।


इत्तेफ़ाक़न इश्क़ समझ बैठा दिल-ए-आश्ना को

तेरे अंदाज़-ए-गुफ़्तगू से मैं वाक़िफ नही था।


असीर बनके रह गया हूँ कैद-ए-तन्हाई का

मेरा ज़ामिन कोई भी तेरे माफ़िक़ नही था।


सुना है वो भी अब शर्मिन्दा है "गौरव"

तासीर से मैं भी इतना,नाकाबिल नही था।।


✍️गौरव

भोपाल मध्यप्रदेश

16.06.2020

अदीब- जानकार     फ़ाज़िल- निपुण

इक्तिज़ा- चाह         आश्ना- जान पहचान

असीर- क़ैदी        ज़ामिन- जमानतदार

तेरे इश्क़ ने...

 तेरे इश्क़ ने...


जो ना देखा था कभी वो,तेरे इश्क़ ने दिखा दिया,

यूँ ना था बेबस कभी मैं, तेरे इश्क़ ने बना दिया।।


महफिलों में यारों की,अपना एक रुतबा था,

यूँ ना था तन्हा कभी मैं,तेरे इश्क़ ने करा दिया।।


मसखरी की मस्तियाँ थी,ज़िन्दगी के खजाने में,

यूँ ना था रोया कभी मैं,तेरे इश्क़ ने रुला दिया।।


हसरतों ने सिखाये थे, हुनर हमें ज़माने के,

एक यूँ बदनाम होना, तेरे इश्क़ ने सिखा दिया।।


हौंसले की कश्तियों से, था मैं साहिल ढूंढता,

बेवफाई के भंवर में, तेरे इश्क़ ने डूबा दिया।।

ख्वाब देखे थे जो हमने,तारे तोड़ लाने के,

टूटकर आसमाँ से ओझल,तेरे इश्क़ ने करा दिया।।


ख्वाहिशें अब भी है बाक़ी, गौरव इश्क़ करने की,

यूँ ना था ज़िद्दी कभी मैं, तेरे इश्क़ ने बना दिया।।


🙏🙏🙏✍️गौरव

05.08.2020

भोपाल मध्यप्रदेश

Wednesday, 16 July 2025

सज़ा ए इश्क़

                                   सज़ा-ए-इश्क़ 

मुजरिम हूं तेरे इश्क का, सख्ती से पेश आइए,

जमानत-ए-रिहाई सिर्फ तू हो, ऐसी सजा सुनाइए।।


उम्र कैद दीजिए या फिर सूली चढ़ाइए 

बांधने मुझे अपनी बांहों की जंजीर बनाइए।।


मेरा हाकिम तू, वकील तू, गवाह तू ही है,

अब और बहस की तकलीफ मत उठाइए।।


मेरे इश्क की तफ़्तीश में,तेरी उम्र गुजर गई,

अब तो एक फैसला मेरे हक में सुनाइए।।


मेरे इश्क के हर गुनाह में शामिल तो तू भी है,

तो फिर जो भी हो सजा मुझे, मेरा साथ निभाइए।। 

✍️गौरव

16.07.2025

Monday, 7 July 2025

कलम गौरव की....

कलम गौरव की...


कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,
सभी ने छोड़ दिया तुमको,
मुझे भी छोड़ दो अब तुम"

बहुत कुछ लिख लिया तुमने, 
उनकी यादों के साये में
वो अब भी लौट आयेगें,
भरम ये तोड़ दो अब तुम
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,"

लिखे जो लफ्ज़ तुमने थे 
उसी के नाम से हर रोज़,
लिखी जो नज़्म भावों से
बनी दिल पर है अब बोझ
उन्हीं नज़्मों को कर के राख
हवाओं में उड़ा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,"

ये काग़ज़ अब नहीं सहते 
तेरे ग़म की स्याही को,
दर्द में डूबे गीतों को
अश्क में भीगे शब्दों को
बनाकर नाव कागज़ की
दरिया में बहा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,

ना उम्मीद है कोई
ना शिकवा कोई बाकी है,
तुझे तन्हा ही है जीना,
ना कोई साथ बाकी है
अगर लिखना है आगे भी,
तो पिछला सब मिटा दो तुम।
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ दो अब तुम,

नही तन्हा तुम कोई,
तुम्हारी सच्ची साथी हूँ
चले गए सब, ये सच है,
मगर तुम अब भी बाकी हो।
नई पुस्तक के पन्नो पर
बस तेरी कहानी हो।
उठा लो फिर से मुझको और,
अब खुदको ही लिखना तुम
 कलम ये कह रही मुझसे,
कि "लिखना छोड़ना मत तुम,
सभी ने छोड़ दिया तुमको,
मुझे मत छोड़ना बस तुम"
कलम ये कह रही मुझसे, 
कि "लिखना छोड़ना मत तुम,"
✍️गौरव
08.07.2025

Saturday, 5 July 2025

मुलाकात

 

वो जो कहती थी, मैं भूल जाया करती हूँ

आज मिली तो, सालों पुरानी बातें कर रही थी,

बहुत दिलचस्प हो गया हूँ अब मैं उसके लिए,

मुझसे मिलके मेरी ही बातें याद कर रही थी....


उसकी आँखों में थी एक नई सी चमक,

जैसे बरसों बाद मिला हो कोई खोया हुआ शख्स,

दिल की गहराइयों में मेरी बातें टटोल रही थी,

मेरे लफ्ज़ों को वो आज भी संभाल रही थी....


उसकी हर बात में थी एक अनकही सी बात,

जैसे अधूरी रह गई हो कोई पुरानी मुलाकात,

उसके लहजे में थी सादगी, था एक ठहराव,

जैसे वक्त ने बाँध लिया हो उसका हर एक भाव...

मेरी हर याद को वो दिल से लगा रही थी,

मुझमें खोकर जैसे खुद को ही पा रही थी...

मुझमें खोकर जैसे खुद को ही पा रही थी...✍️गौरव

05.07.2025

Thursday, 3 July 2025

एक बार फिर वैसे मिलें

 

फिर एक बार वैसे मिलें

✍️ — गौरव

चलो एक बार फिर वैसे मिलें

जैसे मिले थे पहली दफा,

ना हो कोई पर्दा बातों में,

ना हो दरमियाँ कोई फासला

चलो एक बार फिर वैसे मिलें

जैसे मिले थे पहली दफा,


तुम मुस्कुराओ वैसे ही,

मुझे देख शरमाओ वैसे ही,

परत दर परत खुलो मुझसे,

मुझ पर हक जताओ वैसे ही


वो चुप्पियाँ फिर से बोले ज़रा,

सांसों का शोर हो हर जगह,

नज़रों की जुबां फिर समझने लगें

इशारों में हाले-दिल कर दें बयां

चलो एक बार फिर वैसे मिलें

जैसे मिले थे पहली दफा,


भूलकर आज और आने वाला कल,

चलो फिर से जी लें बीता हुआ कल,

ना कोई शिकवा, ना कोई सवाल,

बस याद करें वही प्यार भरे पल।


दोनों को मिलें प्यार के 

फिर वही निशां,

जैसे मिले थे 

पहली दफा,

चलो एक बार फिर वैसे मिलें

जैसे मिले थे पहली दफा,

✍️गौरव

04.07.2025

Saturday, 24 May 2025

इश्क़❤️


करना नहीं था जो हमें, हम वो भी कर गए 

रहना था दूर इश्क से, पर तुमपे मर गए 

डूबे थे इस कदर कि, हमें होश ना रहा 

दरिया की गहराई में, जाने कब उतर गए 

करना नहीं था जो हमें, हम वो भी कर गए 

रहना था दूर इश्क से, पर तुमपे मर गए 


दिल ने सुनी थी जब कभी, तुम्हारी इक सदा 

ख्वाबों को सजाने से खुद को, रोक ना सके 

इक वार नजर का रहा, काफी जंग में 

हम खो गए थे ऐसे, खुद को ढूंढ ना सके 

करना नहीं था जो हमें, हम वो भी कर गए 

रहना था दूर इश्क से, पर तुमपे मर गए 


तेरे बिना ये साँसे, अधूरी सी हैं लगें 

इन धड़कनो में अब तो, तेरा नाम ही चले 

बेताबियों की आग में है, जिस्म तपा के 

इस रूह को काबिल है, बनाया तेरे लिए 

करना नहीं था जो हमें, हम वो भी कर गए 

रहना था दूर इश्क से, पर तुमपे मर गए 


अब ये भी जरूरी नहीं, चाहो तुम हमें 

ये इश्क की रस्में नहीं, बदले में कुछ मिले

अब क्या करें परवाह, जब खुदको मिटा चुके 

सब है कुबूल इश्क़ में, अब हमको जो मिले 

सब है कबूल इश्क़ में, अब हमको जो मिले 

सब है कुबूल इश्क़ में, अब हमको जो मिले....✍️गौरव

24.05.2025