अधूरी मोहब्बत
सिरहाने तकिए के हर रात गुज़र करती है,
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
शुआ-ए-आफ़ताब में सब कुछ भुला देती है,
बे-नूर रतजगों में दिल को बेसबर करती है।
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
तन्हाई में ही नहीं, महफ़िलों में भी अक्सर,
हर खुशनुमा लम्हे में कुछ तो क़सर करती है।
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
हमसफ़र भी मिला, मंज़िलें भी मिल गईं,
बीती मोहब्बत फिर भी यादों में सफ़र करती है।
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
गुज़िश्ता लम्हों के गुलशन से गुज़रकर देखा,
सूखे गुलाबों में खुशबू अब भी बसर करती है।
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
कहकहों की भीड़ में देखता है गौरव,
वो आँखों में छुपे अश्क़ सा बसर करती है।
अधूरी मोहब्बत भी ताउम्र असर करती है।
✍️गौरव
15.09.2025
8:00 PM
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