Tuesday, 15 April 2025

कोई तुम्हे चाहे

तुम खुद नही चाहती कोई तुम्हे चाहे
प्यार करे अपने हक़ के बंधनों में बांधे
आज़ाद पंछियों की तरह चाहती हो उड़ना
बहना चाहती हो नदियों की तरह
उन्मुक्त स्वछंद स्वतंत्र सीमाओ से परे
अपनी मस्ती में काटती ज़िन्दगी की राहें
तुम खुद नही चाहती कोई तुम्हे चाहे ।

करती हो गलतियां कुछ सीखती भी नही
निभाती हो उन रिश्तो को जिनका अस्तित्व ही नही
जाने कितनी आकांक्षाएं दफन कर दी जिंदगी में
जाने कितना दर्द छुपाये रखा है सीने में
फिर भी चेहरे से मुस्कान हटती नही
इन आँखों मे चमक कम होती नही
मिलती हो ज़िन्दगी से खोलकर बांहे
तुम खुद नही चाहती कोई तुम्हें चाहे।

सजना सवरना आता है
फिर भी श्रृंगार कम ही करती हो
पर जिस दिन करती हो
तुम सबसे सुंदर लगती हो
तारीफ करे कोई तो मन में अच्छा लगता है
पर नही चाहती कोई तुमपे आकर्षित हो जाये
रखतीं हो भावनाएं दिल मे दबाये
तुम खुद नही चाहती कोई तुम्हे चाहें।






No comments:

Post a Comment