जिम्मेदारियों की चक्की में पिसता ही रहा
आती रही जनवरी दिसंबर जाता ही रहा....
कुछ पल के लिए खुशनुमा था
मौसम ए ज़िन्दगी
जब सर रखकर माँ की गोद मे सोता मैं रहा...
जवानी की गर्मियों ने बदन ही जला दिया
कुछ शौक पूरे करने मचलता ही मैं रहा....
बारिश भी आई तो हमे भिगा नही सकी
इश्क़ के जख्मों में दिल पिघलता ही रहा.....
सर्दियों की मुझसे है थोड़ी बहुत दोस्ती
घावों पे बर्फ की मरहम लगाता ये रहा....
तुम्हारे लिए है जश्न हर नए साल का
अपने लिए तो बस
आती रही जनवरी दिसंबर जाता ही रहा।।✍️गौरव
01.01.2025