सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल
प्राण देते है धरा को
चूमते आकाश जंगल
सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल.....
दूर चोटी है निहारती
बादलों की ओट से
कैसे बारिश की ये बूंदे
बनके झरने करती कलकल...
सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल.....
इतने अद्भुत अनूठे है
स्वयं शिव भी यहां बैठे है
देते आश्रय कई जीवों को
कइयों के घर चलाते जंगल....
सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल.....
रात के आँचल में लिपटे
दिन को मुँह चिढ़ाते जंगल
रोशनी की रश्मियों को
लताओं में उलझाते जंगल.....
सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल.....
अपनी बनाई इस कृत्रिम दुनिया से
निकलो कभी इस मोह माया से
जीवन को सम्पूर्ण करने
जाओ, तुम्हे बुलाते जंगल.....
सतपुड़ा के घने जंगल
आलसी से पड़े जंगल.....✍️गौरव