तुम रूठ जाती हो तो,
ख़ामोशी सी हो जाती है,
जिंदगी की दौड़ भाग ये चहल पहल,
सब बेमानी सा लगता है,
कैसी बताऊ तुम्हे में मुजरिम हूँ अपने आप का,
"मुझे मनाना नहीं आता " अब ये बड़ा गुनाह सा लगता है,
तुम हँसती हो चहकती हो खिलखिलाती हो,
तो दिल की धडकनों को एक नयी ताल सी मिल जाती है,
तुम रूठ जाती हो तो सांसो की डोर टूटती सी जाती है,
मुझे शिकायत नहीं तुम दूर हो,
में सदा तुम्हे अपने पास ही पाता हूँ,
मगर ना जाने क्यों फिर भी तुम्हे मना नहीं पाता हूँ,
कभी मेरी इस नाकामी को नज़रंदाज़ कर दिया करो,
खुद से मान जाया करो और मुझसे रूठा ना करो...
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